Thursday, January 14, 2010

HINDI POETRY

संजय ग्रोवर की ग़ज़लें
1) मंज़िलों की खोज में तुमको जो चलता सा लगा मुझको तो वो ज़िन्दगी भर घर बदलता सा लगाधूप आयी तो हवा का दम निकलता सा लगा और सूरज भी हवा को देख जलता सा लगाझूठ जबसे चाँदनी बन भीड़ को भरमा गया सच का सूरज झूठ के पाँवों पे चलता सा लगामेरे ख्वाबों पर ज़मीनी सच की बिजली जब गिरी आसमानी बर्क क़ा भी दिल दहलता सा लगाचन्द क़तरे ठन्डे क़ागज़ के बदन को तब दिए खून जब अपनी रगों में कुछ उबलता सा लगा2)वो मेरा ही काम करेंगे जब मुझको बदनाम करेंगेअपने ऐब छुपाने को वो मेरे क़िस्से आम करेंगेक्यों अपने सर तोहमत लूं मैं वो होगा जो राम करेंगेदीवारों पर खून छिड़क कर हाक़िम अपना नाम करेंगेहैं जिनके किरदार अधूरे दूने अपने दाम करेंगेअपनी नींदें पूरी करके मेरी नींद हराम करेंगेजिस दिन मेरी प्यास मरेगी मेरे हवाले जाम करेंगेकल कर लेंगे कल कर लेंगे यूँ हम उम्र तमाम करेंगेसोच-सोच कर उम्र बिता दी कोई अच्छा काम करेंगेकोई अच्छा काम करेंगे खुदको फिर बदनाम करे.

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