
Saturday, January 16, 2010
मैं और रोमांस चाहता हूं- अक्षय कुमार

अक्षय के स्टंट पर पानी फिरा

अक्षय को ‘स्टंटमैन’ की उपाधि मिली

अक्षय कुमार

90 के दशक में, [१]हिट एक्सन फिल्मों जैसे खिलाडी (Khiladi) ( 1992 ), मोहरा (Mohra) ( 1994 ) और सबसे बड़ा खिलाड़ी (Sabse Bada Khiladi) (1995 ) में अभिनय करने के कारण, कुमार को बोलीवुड का एक्सन हीरो की संज्ञा दी जाती थी, और विशेषतः वे "खिलाड़ी श्रेणी" के लिए जाने जाते थे.फिर भी, वह रोमांटिक फिल्मों जैसे ये दिल्लगी (Yeh Dillagi) ( 1994 ) और धड़कन (Dhadkan) ( 2000 ) में अपने अभिनय के लिए सम्मानित किए गए और साथ ही साथ ड्रामेटिक फिल्मों जैसे एक रिश्ता (Ek Rishtaa) ( 2001 ), में अपनी अभिनय क्षमता को दिखाया.
2002 में, वे अपना पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ विलेन (Best Villain) के रूप में फ़िल्म अजनबी (Ajnabee) ( 2001 ) में अपने अभिनय के लिए. अपनी एक सी इमेज को बदलने के इच्छुक अक्षय कुमार ने ज्यादातर कोमेडी फिल्में की.[१]फ़िल्म हेरा फेरी (Hera Pheri) (2002), मुझसे शादी करोगी (Mujhse Shaadi Karogi) (2004), गरम मसाला (Garam Masala) (2005) और जान-ए-मन (Jaan-E-Mann) (२००६) में हास्य अभिनय के लिए फ़िल्म समीक्षकों द्वारा उनकी प्रशंसा की गई. 2007 में वे सफलता की उचाईयों को चुने लगे, जब उनके द्वारा अभिनीत चार लगातार कामर्सियल फिल्में हिट हुई.इस तरह से, वे अपने आपको हिन्दी फ़िल्म उद्योग में एक प्रमुख अभिनेता के रूप में स्थापित किया.[२]
अनुक्रम[छुपाएँ]
१ प्रारंभिक जीवन
२ कैरियर
३ निजी जीवन
४ पुरस्कार और नामांकन
५ संदर्भ
६ बाहरी लिंक्स
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[संपादित करें] प्रारंभिक जीवन
रवि हरी ओम भाटिया अमृतसर (पंजाबी) के एक मध्यम वर्ग (middle class) पंजाबी (Punjabi) परिवार काम जन्म लिए.[३]उसके पिता एक सरकारी कर्मचारी the.बहुत ही चोटी उम्र से ही, वे एक कलाकार के रूप में जाने गए, विशेषतः एक डांसर के रूप में. मुंबई आने से पहले, कुमार दिल्ली के चाँदनी चोक (Chandni Chowk) में एक पड़ोसी के घर पले बढे.[४]मुंबई में, वे कोलीवाडा (Koliwada) में रहते थे जो एक पंजाबी बहुल क्षेत्र था.[४]वे डोन बोस्को विद्यालय में पढाई किए और फ़िर खालसा कोलेज में, जहाँ वे खेल में अपनी रूचि दिखाई.[४]
वे मार्सल आर्ट्स (martial arts) की शिक्षा बेंगकोक में प्राप्त किया और वहां एक शेफ (Chef) की नौकरी भी करते थे. वे फ़िर मुंबई वापस आ गए, जहाँ वे मार्सल आर्ट्स की शिक्षा देने लगे.उनका एक विद्यार्थी जो एक फोटोग्राफर था और उन्हें मोडलिंग करने कहा.उस विद्यार्थी ने उन्हें एक चोटी कंपनी में एक मोडलिंग असयांमेंट दिया.उन्हें केमरे के सामने पोज देने के लिए, दो घंटे के 5,000 रुपये मिलते थे, पहले की सेलरी 4000 रुपये प्रति महीने की तुलना में.यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण था कि वे क्यों मोडल बने.मोडलिंग करने के दो महीने बाद, कुमार को प्रमोद चक्रवर्ती ने अंततः अपनी फ़िल्म दीदार (Deedar) में अभिनय करने का मौका दिया.[४]
[संपादित करें] कैरियर
कुमार बोलीवुड में अभिनय की शुरुवात 1991 की फ़िल्म सौगंध (Saugandh) से की, जो सराहा नही गया.उनकी पहली प्रमुख हिट 1992 की थ्रिलर फ़िल्म खिलाड़ी (Khiladi) थी. 1993 का वर्ष उनके लिए अच्छा नही रहा क्योंकि उनकी अधिकतर फ़िल्म फ्लॉप हो गई.फ़िर भी, 1994 का वर्ष कुमार के लिए बेहतरीन वर्ष रहा जिसमें खिलाड़ी के साथ मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी (Main Khiladi Tu Anari) और मोहरा (Mohra) जो साल का सार्वाधिक सफल फिल्मों में से था.[५]बाद में, यश चोपडा ने उन्हें रोमांटिक फ़िल्म ये दिल्लगी (Yeh Dillagi) में लिया जो एक सफल फ़िल्म थी.[५]उन्हें इस फ़िल्म के लिए सराहना मिली, जिसमें वे एक रोमांटिक किरदार में थे जो बहुत ही अलग था उनके एक्सन किरदार से.उन्हें फ़िल्मफेयर और स्टार स्क्रीन उत्सवों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए पहला नोमिनेशन मिला.ये सारी उपलब्धियां, कुमार को उस साल का सफलतम अभिनेता बना दिया.[६]
1995 में, अपनी असफल फिल्मों के साथ, वे खिलाड़ी श्रेणी के तीसरी फ़िल्म सबसे बड़ा खिलाड़ी (Sabse Bada Khiladi) में अभिनय किया, जो एक हिट थी.[७]वे खिलाड़ी श्रेणी के सभी फिल्मों में सफल रहे, और फ़िर बाद के वर्ष में खिलाड़ी टायटल के साथ फ़िल्म खिलाड़ियों के खिलाड़ी (Khiladiyon Ka Khiladi) में अभिनय किया जिसमें उनके साथ रेखा और रवीना टंडन (Raveena Tandon) थी.यह फ़िल्म उस साल का सर्वाधिक सफल फ़िल्म रही.[८]
1997 में, यश चोपडा की हिट फ़िल्म दिल तो पागल है (Dil To Pagal Hai) में मेहमान कलाकार की भूमिका निभाई, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार में नामांकन हुआ.उसी साल, वे खिलाड़ी श्रेणी के पांचवें फ़िल्म मिस्टर एंड मिसेस खिलाड़ी (Mr and Mrs Khiladi) में हास्य भूमिका में नजर आए.खिलाड़ी टायटल के साथ उनकी पिछली फिल्मों की तरह, यह फ़िल्म हिट नही हुई.[९]और इस तरह इस फ़िल्म की तरह, उनका अगला खिलाड़ी नाम से रिलीज सारी फिल्में आने वाले साल में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होते चला गया. 1999 में, कुमार को फ़िल्म संघर्ष (Sangharsh) और जानवर (Jaanwar) में उनके किरदार के लिए अच्छी सराहना मिली.जबकि पहली फिल्में बॉक्स ऑफिस पर फायदा नहीं कमा सकी, पर बाद में उन्हें सफलता मिली.[१०]
2000 में कोमेडी फ़िल्म हेरा फेरी (Hera Pheri) (2000)में अभिनय किया जो हर लिहाज से सफल रही,[११] और इस फ़िल्म में उन्होंने अपने आपको एक एक्शन और रोमांटिक भूमिकाओं की तरह एक सफल कोमेडी रोल भी अच्छी तरह निभाया.उन्होंने रोमांटिक फ़िल्म धड़कन (Dhadkan) में भी काम किया और बाद में उसी साल उसे काफ़ी सफलता मिली.[११]2001 में, फ़िल्म अजनबी (Ajnabee) में कुमार ने एक नकारात्मक किरदार निभाया. उनकी फ़िल्म को काफी सराहा गया तथा बेस्ट विलेन (Best Villain) के लिए पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला.
हेरा फेरी की सफलता के बाद अक्षय कुमार ने कई कोमेडी फिल्मों में काम किया, जिनमें शामिल हैं आवारा पागल दीवाना (Awara Paagal Deewana) (2000), मुझसे शादी करोगी (Mujhse Shaadi Karogi) (2004) और गरम मसाला (Garam Masala) (2005).यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर बेहद सफल रही और उनके अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार (Best Comedian) का दूसरा फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.[१२][१३]
अपनी एक्शन, कोमेडी और रोमांटिक भूमिकाओं के अलावा कुमार ने ड्रामाई रोल भी बखूबी निभाये जैसे कि एक रिश्ता (Ek Rishtaa) (2001), आँखें (Aankhen) (2002), बेवफा (Bewafaa) (2005) और Waqt: The Race Against Time (2005).
२००६ में वे हेरा फेरी टायटल से बनी दूसरी फ़िल्म फ़िर हेरा फेरी (Phir Hera Pheri) में अभिनय किया. पिछले फ़िल्म की तरह, यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस में सफल हुई.[१४]बाद में उसी वर्ष सलमान खान के साथ रोमांटिक संगीत फ़िल्म जान-ए-मन (Jaan-E-Mann) में अभिनय किया. इस फ़िल्म का बेसब्री से इंतजार था और आलोचकों से अच्छा रिव्यू मिलने के बावजूद यह बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सका.[१४]फ़िल्म तो अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी परन्तु एक शर्मीले और प्यारे व्यक्ति के रूप में उनकी तारीफ़ की गई.[१५]वे यह वर्ष हास्य फ़िल्म भागम भाग (Bhagam Bhag) से समाप्त किए, जो सफल रही.[१४] उसी साल, गर्म 2006 विश्व भ्रमण किया जिसमें सैफ अली खान, प्रीति जिंटा, सुष्मिता सेन और सेलिना जेटली (Celina Jaitley) साथ थे.[१६]
वर्ष 2007 अक्षय कुमार के लिए उनके कैरियर का इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा सफल वर्ष रहा और बॉक्स ऑफिस के विश्लेषकों ने "शायद एक अभिनेता के लिए चार सीधे हित और बिना किसी फ्लॉप के शानदार वर्ष रहा.[२] उनकी पहली रिलीज, नमस्ते लन्दन (Namastey London), आलोचनात्मक दृष्टि व कामर्सियल दृष्टि से सफल रही.आलोचक तरन आदर्श (Taran Adarsh) ने फ़िल्म में उनके प्रदर्शन के बारे लिखा कि वे निश्चित रूप से फ़िल्म देखने लाखों दर्शकों का मन अपनी इस फ़िल्म के जरिये लेंगे."[१७] उनकी दो अगली रिलीज हे बेबी (Heyy Babyy) और भूल भुलैया (Bhool Bhulaiyaa) दोनों बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट हुई.[१८][१९] वर्ष का कुमार के लिए आखिरी रिलीज वेलकम (Welcome) थी जो बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया, ब्लोकबस्टर का अवसर मिला तथा साथ में वे पांचवीं लगातार हिट फ़िल्म देने वाले हीरो बन गए.[२०]उस वर्ष कुमार की जितनी भी फिल्में रिलीज हुई वह विदेशी बाजार में भी अच्छा किया.[२१]
[संपादित करें] निजी जीवन
बोलीवुड में रहने के दौरान, कुमार को अपने साथ काम करने वाली कई अभिनेत्रियों के साथ जोड़ा गया जैसे रवीना टंडन (Raveena Tandon), रेखा और शिल्पा शेट्ठी (Shilpa Shetty). जाने माने कलाकार राजेश खन्ना और डिम्पल कपाडिया (Dimple Kapadia) की बेटी ट्विंकल खन्ना (Twinkle Khanna) से दो बार इंगेज होने के बाद अंत में उन्होंने 14 जनवरी, 2001 में शादी कर ली. उनके बेटे का नाम आरव है जो १५ सितम्बर (September 15), २००२ में जन्म लिया.
वर्ष 2007 में, मुंबई के एक जाने माने टेबलोयद समाचार पात्र ने एक ख़बर छापी कि उनकी पत्नी उन्हें छोड़ कर चली गई है और वे घर से बाहर निकल गायें हैं व एक होटल में रह रहे हैं.[२२] 26 जुलाई (July 26), 2007 को पति पत्नी ने टेबलोयद को एक कानूनी नोटिस भेजा, जिसमें यह बताया गया कि यह अपवाह झूटी थी.कुमार ने कहा:
America's greenest tower

The new corporate headquarters for the Bank of America located at One Bryant Park in Midtown Manhattan is nearing completion. Designed by New York architect Cook + Fox, the 52 storey glass and steel tower will be the first high rise building in the city to be LEED Platinum certified and the greenest skyscraper in the country.
Located on the largest development site in Midtown Manhattan, the Bank of America Tower will house the 1.6 million sq ft headquarters for the New York operations of Bank of America and the 50,000 sq ft restored and reconstructed Henry Miller Theater, as well as 1 million sq ft of office space for other tenants. The $1 billion project, co-developed by Bank of America and The Durst Organization, will rise adjacent to the Condé Nast Building at Four Times Square.
The building is noteworthy for its pioneering integration of high-performance environmental technologies. The building’s sustainable features include a floor to ceiling high performance glass curtain wall, an advanced under-floor air delivery system and an on site cogeneration plant which works in concert with an ice-storage system to reduce energy demands. The tower will also capture and reuse nearly all rainwater and wastewater, saving millions of gallons of clean water each year.
The building’s faceted crystal form lets daylight reach the street, while capturing and refracting the changing angles of the sun. In contrast to its sleek exterior the base of the building locks into the urban fabric with natural, earth-bound elements that relate to the human scale of the street. Like a front porch, an Urban Garden Room at the corner of Sixth Avenue and 43rd Street will provide public space and act as an extension of Bryant Park.
Sharon McHughUS Correspondent
ब्रिटेन में सिंगल मदर्स में डिप्रेशन ज्यादा

भारत में विधि का इतिहास-9 : मेयर न्यायालय और गवर्नर के बीच आपसी विवाद और टकराव

धर्म परिवर्तन का मामला- 1730 में मुम्बई में एक सिन्धी महिला द्वारा ईसाई धर्म ग्रहण कर लेने के कारण उस ेक 12 वर्षीय पुत्र ने माता को छोड़ कर अपने संबंधियों के यहाँ रहना आरंभ कर दिया। माता ने शरण देने वाले संबंधियों के विरुद्ध पुत्र को अवांछित रीति से निरुद्ध करने और उस के आभूषण अवैध रूप से रखने का वाद संस्थित किया। मेयर न्यायालय ने पुत्र को माता को सौंपने का आदेश दिया। अपील करने पर सपरिषद गवर्नर ने कहा कि मेयर न्यायालय धार्मिक रीति के मामलों और देशज व्यक्तियों के मामलों में मेयर न्यायालय को अधिकारिता न होने का निर्णय पारित कर दिया और न्यायालय को चेतावनी जारी की कि उसे ऐसे मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। न्यायालय ने गवर्नर का विरोध करते हुए कहा कि मामला धार्मिक और 1726 के चार्टर के प्राधिकार से न्यायालय इस तरह के मामले निपटाने के लिए सक्षम है। मेयर ने घोषित किया कि जब तक वह न्यायालय का प्रमुख रहेगा ऐसे मामले निपटाता रहेगा और न्यायालय के अधिकार की रक्षा करेगा। वह किंग इन काउंसिल तक जाने में संकोच नहीं करेगा। गवर्नर कोबाल ने मेयर को गवर्नर परिषद के सचिव पद से हटा दिया। सूचना कंपनी के निदेशक मंडल को इंग्लेंड में मिली तो उन्हों ने परिषद के अविवेकपूर्ण रवैये की और भविष्य में ऐसी तनावपूर्ण स्थितियाँ उत्पन्न न होने देने का आदेश दिया।

मेयर और सचिव टेरियानों का मामला- मद्रास सरकार के सचिव टेरियानो और मेयर नाएश के बीच एक रात्रि भोज में शर्त लगी, जिस में मेयर हार गया लेकिन उस ने शर्त की राशि देने से मना कर दिया। इस पर टेरियनो ने उस के लिए वाद संस्थित किया। मेयर न्यायालय ने निर्णय दिया कि न्यायालय में मेयर के विरुद्ध वाद संस्थित नहीं किया जा सकता। इस से गवर्नर और न्यायालय के संबंध खराब हो गए। नाएश के दुबारा मेयर चुन लिए जाने पर गवर्नर ने उसे शपथ ग्रहण करने की अनुमति नहीं दी। फिर नया मेयर चुनना पड़ा।
संकुराम का मामला- 1735 में कंपनी ने एक भारतीय संकुराम पर संविदा भंग का मामला संस्थित किया। गवर्नर ने मेयर न्यायालय को संकुराम के विरुद्ध निष्पादन का वारंट जारी करने निर्देश दिया। न्यायालय ने संकुराम के प्रति नरमी बरतते हुए मामले में विलंब कर दिया। गवर्नर कौंसिल ने इसे अपील न्यायालय का अपमान समझते हुए मेयर और ऐल्डरमैनों के विरुद्ध निर्देशों के उल्लंघन का मामला प्रस्तुत करने का आदेश दिया। न्यायालय ने निर्देश को चुनौती देते हुए कहा कि जिस मामले में सपरिषद गवर्नर स्वयं पक्षकार है उस में उस का निर्देश देना विधिमान्य नहीं हो सकता। बाद में कंपनी के निदेशक मंडल के हस्तक्षेप से पक्षकारों में समझौता संपन्न हुआ।इस तरह 1926 के चार्टर से स्थापित न्याय व्यवस्था ने जहाँ कुछ नई परंपराएँ विकसित कीं वहीं वह आपसी विवादों के कारण संतोषजनक नहीं रही। बाद में 1753 का चार्टर जारी कर इस आपसी संघर्ष पर विराम लगाने का प्रयत्न किया गया।
मद्रास पर फ्रांसिसियों का कब्जा14 सितंबर 1746 को मद्रास पर फ्रांसिसियों ने कब्जा कर लिया जो तीन वर्षों तक बना रहा। वहाँ न्यायिक व्यवस्था निलंबित हो गई। 1749 में फ्रांसिसियों और अंग्रेजों के बीच हुई संधि से मद्रास पुनः कंपनी को प्राप्त हुआ। पुरानी न्याय व्यवस्था को पुनर्जीवित किए जाने के प्रयास किए गए जो निष्फल रहे। विधिज्ञों का मत था कि विदेशी आधिपत्य के कारण पुराने चार्टरों की वैधता समाप्त हो गई है। 8 जनवरी 1753 को ब्रिटिश सम्राट ने एक नया चार्टर जरी किया जिस के द्वारा 1726 के चार्टर के दोषों का निराकरण करने का प्रयत्न किया गया था। यह चार्टर तीनों प्रेसिडेंसियों के लिए समान रूप से जारी किया गया था।
न्यायालयों की स्वायत्तता का अंत
1753 के चार्टर के द्वारा नगर निगमों और मेयर न्यायालयों पर सपरिषद गवर्नर के नियंत्रण को प्रभावी बना दिया गया। ऐल्डरमैन के पदों की रिक्तियों के लिए प्राधिकार सपरिषद गवर्नर को दे दिया गया। ऐल्डरमैनों द्वारा मेयर का चुनाव करने की पद्धति को समाप्त कर दिया गया उस के स्थान पर ऐल्डरमैन दो नामों का प्रस्ताव करने लगे जिस में से किसी एक को सपरिषद गवर्नर द्वारा मेयर नियुक्त किया जाने लगा। मेयर न्यायालय के गठन का अधिकार भी सपरिषद गवर्नर को दे दिया गया। अब निगम या न्यायालय में कोई भी तभी तक नियुक्त रह सकता था जब तक कि उस पर सपरिषद गवर्नर की मेहरबानी रहे। इस तरह निगम और न्यायालय दोनों ही सपरिषद गवर्नर की अनियंत्रित शक्तियों के अधीन हो गए। मेयर न्यायालयों की स्वायत्तता का अंत हो गया। देशज व्यक्तियों को 1753 के चार्टर से अपने मामलों के अपने रीति रिवाजों के अनुसार अपने निर्णायकों निपटाने की छूट प्रदान कर दी गई। किसी मामले में पक्षकार सहमत होते थे तो मामला मेयर न्यायालय को निर्णय के लिए सोंपा जा सकता था। इस तरह मेयर न्यायालय की अधिकारिता स्पष्ट रूप से सीमित कर दी गई थी।
प्रार्थना न्यायालयों की स्थापना1753 के चार्टर से छोटे पाँच पैगोडा तक के दीवानी मामलों के लिए प्रत्येक प्रेसीडेंसी में एक-एक प्रार्थना न्यायालय की स्थापना की गई। जिस में कंपनी में कार्यरत कर्मचारी को न्यायिक प्राधिकारी नियुक्त किया जाता था जो कमिश्नर कहलाता था। इन की संख्या एक न्यायालय में आठ से चौबीस तक हो सकती थी। आधे प्राधिकारी प्रत्येक वर्ष सेवानिवृत्त हो जाते थे। रिक्तियों की पूर्ति गवर्नर करता था। ये न्यायालय त्वरित और सस्ता न्याय देने के लिए उपयोगी सिद्ध हुए। इस तरह अब चार तरह के न्यायालय हो गए थे। 1. प्रार्थना न्यायालय, 2. मेयर न्यायालय, 3. शांति और सत्र न्यायालय तथा प्रिवि काउंसिल जिस में मेयर न्यायालय के एक हजार पैगोडा से अधिक के निर्णयों की अपील प्रस्तुत की जा सकती थी।
कुछ अन्य विशेषताएँमेयर न्यायालय को मेयर के विरुद्ध वाद की सुनवाई का अधिकार दिया गया था। वह कंपनी के विरुद्ध भी वादों की सुनवाई कर सकता था। ऐसे मामलों में कंपनी को विरोधी पक्षकार के रूप में पक्ष प्रस्तुत करने का अधिकार था। किसी न्यायाधीश का किसी मामले में हित संबद्ध होता था तो उसे न्यायाधीश के रूप में बैठने की अनुमति नहीं थी। ईसाई साक्षियों के लिए शपथ विधि निर्धारित कर दी गई थी, जब कि अन्य मामलों में प्रचलित प्रथा के अनुसार शपथ ग्रहण करने की छूट दे दी गई थी।
भारतियों के लिए न्याय प्रशासन
1753 के चार्टर में भारतीय व्यक्तियों के लिए मेयर न्यायालय की अधिकारिता से छूट मिल जाने और रीति रिवाजों के अनुसार निर्णायकों द्वारा न्याय कराने की छूट मिल जाने से प्रेसिडेंसियों में अलग अलग देशज न्याय व्यवस्था स्थापित हो गई थी।मद्रास - यहाँ चाउल्ट्री न्यायालय थे जो 20 पैगोडा मूल्य के दीवानी मामलों का निपटारा करते थे। वे 1774-75 में कुछ अवधि के अलावा 1796 तक कार्य करते रहे। जब तक कि कंपनी ने अपना कर्मचारी नियुक्त कर के एक सामान्य न्यायालय स्थापित नहीं कर दिया। सामान्य न्यायालय को पाँच पैगोडा मूल्य तक के मामलों की सुनवाई का अधिकार रह गया था। 1798 में इस न्यायालय का स्थान अभिलेखक के न्यायालय ने ले लिया और 1800 में यह न्यायालय सदैव के लिए समाप्त हो गया।मुम्बई - यहाँ देशज व्यक्तियों के लिए कोई पृथक न्यायालय नहीं था। यहाँ के निवासियों को ब्रिटिश प्रजा मान कर मेयर न्यायालय ही काम करता रहा। तर्क यह था कि मुम्बई द्वीप इंग्लेंड के सम्राट को दहेज में मिलने के कारण यहाँ के निवासी उन की प्रजा हो गये थे।कोलकाता - यहाँ भारतियों के लिए पहले की तरह जमींदार के न्यायालय काम करते रहे। उन्हें ही सक्षम बनाया गया। यहाँ हिन्दू और मुसलमानों को ही देशज माना गया अन्य देशज लोगों पर मेयर न्यायालय की ही अधिकारिता रखी गई। सत्र न्यायालय सभी पर समान रूप से दाण्डिक प्राधिकार रखता था और अंग्रेजी विधि के अनुरूप कठोर दंड प्रवर्तित करता था।
समीक्षान्यायालय और कार्यपालिका के बीच मतभेद समाप्त करने की इस योजना से न्यायपालिका पर कार्यपालिका का पूर्ण नियंत्रण हो गया था और स्वतंत्र न्यायपालिका के सिद्धांत को आघात पहुँचा। मेयर न्यायालय में कंपनी के अधिकारियों की नियुक्ति से वे न तो अंग्रेजी विधि में दक्ष थे और न ही स्थानीय रिवाजों और परंपराओं से भिज्ञ थे। उन के द्वारा किया गया न्याय बहुत घटिया होता था। भारतियों के प्रति भेदभाव बरता जाता था। देशज व्यक्ति और कंपनी के बीच विवाद में अक्सर कंपनी का ही हित होता था। पेचीदा मामलों को इंग्लेंड भेजा जाता था जिस से न्याय में बहुत विलंब होता था।मेयर न्यायालय की अपील को सुनने का अधिकार प्रिवि कौंसिल को दिया गया था लेकिन यह व्यवस्था अधिक कारगर सिद्ध नहीं हुई। और मेयर न्यायालय ही केंद्रीय न्यायालय बना रहा, जिस पर सपरिषद गवर्नर का कठोर नियंत्रण था।न्यायालय को केवल प्रेसीडेंसी के निवासियों के मामलों पर ही सुनवाई का प्राधिकार था जिस से नगर के बाहर के अपराधियों को न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता था जिस से वे बचे रह जाते थे। प्रेसीडेंसी के देशज निवासियों की प्रथाओं और रीति रिवाजों के विपरीत विधि होने से उन्हें युक्तिसंगत न्याय नहीं मिल सकता था। न्यायालयों में कुछ अटॉर्नियों को पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी गई थी लेकिन वे अंग्रेज होने के कारण भारतीय रीति रिवाजों से अनभिज्ञ होने से भारतीय पक्षकारों के लिए पूरी तरह से अनुपयोगी थे। वे यदि कंपनी के विरुद्ध किसी मामले में पैरवी करने को तैयार भी हो जाते थे तो उन के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जाती थी। इस न्याय व्यवस्था में भारतियों को कोई स्थान प्राप्त नहीं था। इस से भारतियों में इस न्याय व्यवस्था पर विश्वास कायम नहीं हो सका था। इन दोषों के बावजूद 1726 और 1753 के चार्टरों से स्थापित न्याय व्यवस्था ने भारत में अंग्रेजी विधि और न्यायिक व्यवस्था का प्रसार किया और न्याय व्यवस्था के विकास में एक नया अध्याय जोड़ कर भावी न्याय व्यवस्था के लिए नींव रखी। 1773 में विनियम अधिनियम के आने पर कलकत्ता में मेयर न्यायालय समाप्त हो गया और सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई।
अब डिस्कवरी चैनल पर दिखेगा भारत का इतिहास

लखनऊ , 13 अप्रैल (आईएएनएस)। यदि आपके मन में भारत के इतिहास को सिलसिलेवार ढंग से जानने की जिज्ञासा है तो इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए डिस्कवरी चैनल तैयारी कर रहा है। पहला भारतीय कौन था? या फिर भारत की शुरुआत कैसे हुई? इन तमाम तथ्यों की गुत्थी अब डिस्कवरी चैनल 'द स्टोरी ऑफ इंडिया' नामक धारावाहिक से सुलझाएगा।
यह जानकारी डिस्कवरी चैनल के मार्केटिंग एंड कम्युनिकेशन विभाग के निदेशक राजीव बक्शी ने दी। उन्होंने कहा, "छह कड़ी वाले इस धारावाहिक की शुरुआत 16 अप्रैल से की जा रही है। इसका पुन: प्रसारण प्रत्येक रविवार को ग्यारह बजे किया जायेगा।" धारावाहिक में प्रमुख इतिहासकार माइकल वुड भारत की रोमांचक यात्रा पर रवाना होंगे। इसके तहत भारत के इतिहास की बेहद खास घटनाएं दिखाई जाएंगी।
बातचीत के दौरान उन्होंने जानकारी दी कि भारतीयों के पूर्वज करीब 70 हजार वर्ष पहले अफ्रीका से निकलकर अरब सागर के तट से होते हुए दक्षिण भारत पहुंचे थे। वे लोग जरूरत और उत्सुकतावश यहां तक पहुंचे थे। पहले भारतीयों का डीएनए तमिलनाडु में ही पाया गया है। मदुरई विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने तमिलनाडु की जनजातीय गांव के लोगों का डीएनए टेस्ट कराया जिससे प्रवास से जुड़े इस इतिहास के बारे में कई सुराग मिले।
राजीव ने कहा, " इस धारावाहिक में उन सभी तरीकों का इस्तेमाल किया गया है जिसे ऐतिहासिक जासूस करते हैं। साथ ही इसमें तथ्य स्वरूप डीएनए, प्राचीन पाण्डुलिपि, पुरातत्व विज्ञान, उप महाद्वीप और जीवित जीवों के लेखा-जोखा का भी प्रयोग किया जा रहा है।"
धारावाहिक के माध्यम से भारत के राजस्थान, दिल्ली, फतेहपुर सीकरी और आगरा जैसे अन्य स्थलों और ताजमहल के निर्माण के बारे में हैरतअंगेज तथ्य प्रस्तुत किए जाएंगे।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
जो कुछ हूं, मार्शल आर्ट की वजह से हूं: अक्षय कुमार

पचास हजार का एक आलू

आमिर की फिल्म को 'ए' सर्टिफिकेट

मुंबई। सेंसर बोर्ड ने अभिनेता आमिर खान की आगामी फिल्म 'पीपली लाइव' को 'ए' सर्टिफिकेट दिया है। किसानों की आत्महत्या की पृष्ठिभूमि पर आधारित इस फिल्म में गांवों के क्रियाकलाप और बेबाक भाषा को हू-ब-हू दर्शाया गया है।इस फिल्म से जुड़े आमिर खान के एक करीबी सूत्र का कहना है कि फिल्म की कहानी की मांग के अनुसार उसमें दर्शाए गए गए कुछ ग्रामीण परवेश और भाषा के दृश्य को काटने के बाद सेंसर बोर्ड ने 'यू' सर्टिफिकेट देने का संकेत दिय था। परंतु आमिर इससे सहमत नहीं थे। वे 'पीपली लाइव' फिल्म में से एक भी लाइन काटने के पक्ष में नहीं थे। इसलिए उन्होंने अपनी इस फिल्म को 18 वर्ष से अधिक उम्र के दर्शकों को ही दिखाने का आखिरकार निर्णय लिया।'पीपली लाइव' फिल्म ने सनडेन्स फिल्म समारोह में अपनी आधिकारिक एंट्री के साथ ही जमकर सुर्खियां बटोरी हैं। इतना ही नहीं इस फिल्म ने वल्र्ड सिनेमा कथा की श्रेणी में एंट्री पाई है। इस समारोह में एंट्री पाने वाली यह पहली भारतीय फिल्म है। यही वजह है कि अभिनेता आमिर खान भारतीय दर्शकों को यह फिल्म दिखाते वक्त उसमें किसी भी प्रकार का कट करने के जरा भी पक्ष में नहीं थे। इस फिल्म की डायरेक्टर दिल्ली की अनुषा रिजवी का कहना है कि यह एक व्यंग्य फिल्म है, जो गांव के कडुवे सच को बयां करती है और हमारा मकसद भी दर्शकों को असली भारत से रू-ब-रू कराना है।
Friday, January 15, 2010
कश्मीर मसले को सुलझाने में अमेरिका सबसे मुफीद- ज़रदारी

लेडी डॉक्टर के इश्क ने पहुंचाया जेल

12 नवंबर को एक डॉक्टर पिता ने पुलिस में शिकायत की कि उनकी बेटी रागिनी (बदला हुआ नाम) पेशे से डॉक्टर है। उसके मोबाइल पर दो अलग-अलग नंबरों से मिस कॉल और एसएमएस भेज कर कोई उसे परेशान कर रहा है। पुलिस ने जब मामले की पड़ताल की तो पता चला कि एक नंबर टीकमगढ़ तथा दूसरा इंदौर के मुखर्जीनगर का है। टीम ने मुखर्जीनगर के पते पर दबिश दी तो पता चला कि सिम अजित यादव के नाम थी।
पुलिस ने जब अजीत यादव से पूछताछ की तो पता चला सिम कार्ड उसका जरूर है लेकिन एक माह पहले वह गुम हो गया था। पुलिस ने और सख्ती की तो उसने बताया टीकमगढ़ निवासी महेंद्र पिता जुगलकिशोर राजपूत (20) उसका दोस्त है। वह इंदौर में रहता है और उसका घर में आना-जाना लगा रहता है। बुधवार को महेंद्र को पकड़ा गया तो उसने जुर्म कबूल कर लिया।
पूछताछ में महेंद्र ने बताया कि वह एक निजी अस्पताल में बुखार का इलाज कराने गया था लेकिन वहां पर लेडी डॉक्टर को देख कर उसे इश्क हो गया। इसलिए वह लेडी डॉक्टर को एसएमएस और मिस क़ॉल किया करता था।
महात्मा गांधी के पिता का नाम गोडसे!

हैदराबाद। हो सकता है कि आप का जनरल नॉलेज इस बात की तस्दीक न करे, लेकिन आंध्र प्रदेश के कुछ अधिकारियों का जनरल नॉलेज यही कहता है कि महात्मा गांधी के पिता का नाम है नाथूराम गोडसे।
हैदराबाद के पास चितूर जिले में एक ऐसे राशन कार्ड के बारे में पता चला है जो महात्मा गांधी के नाम पर बनाया गया है। इस राशन कार्ड में बाकायदा महात्मा गांधी की फोटो भी लगाई गई है। लेकिन इससे भी ज्यादा हैरानी की बात ये है कि इसमें महात्मा गांधी के पिता का नाम लिखा गया है नाथूराम गोडसे। और तो और, इसमें गांधी जी की उम्र 65 वर्ष बताई गई है। घर का पता 15-46541 गांधी स्ट्रीट, गांधी रोड लिखा गया है। यह पता वहां कि एक उचित मूल्य की दुकान का है।
इस मामले का खुलासा तब हुआ जब फर्जी राशन कार्डों के बारे में पता लगाने के लिए चितूर जिले में अभियान चलाया जा रहा था। इस दौरान जब अधिकारियों ने महात्मा गांधी के नाम से बनाए गए इस राशन कार्ड को देखा तो वे हक्के-बक्के रह गए। यह राशन कार्ड चितूर जिले के रामचंद्रपुरम मंडल के चित्तागुंटा गांव में जारी किया गया था। जिलाधिकारी वी शेषाद्री ने इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच दल का गठन कर दिया है। उनका कहना है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
चोरी करने गया लेकिन नहाने लगा, पकड़ा गया चोर

रविवार सुबह एक चोर एक घर में घुस गया और उसके अंदर जाकर वहां नहाने लगा। जब लोगों ने पुलिस को बताया तो फिर उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
मालूम हो कि उस घर में रह रहे लोग घर से बाहर निकल आए लेकिन चोर अंदर ही नहाने लगा। थोड़ी देर में पुलिस पहुंची और उसे गिरफ्तार कर लिया। उसे 1 साल जेल की सजा सुनाई गई है।
Thursday, January 14, 2010
LITERARY NEWS
16 जून को हिंदी के प्रसिद्ध हास्य कवि अशोक चक्रधर के संचालन में एक ऑनलाइन हिन्दी कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। इस सम्मेलन में दुनिया भर के लगभग 100 हिंदी कवियों व साहित्यकारों के हिस्सा लेने की आशा है।
होशंगाबाद ई-लायब्रेरी के संयोजन में स्काईपी (Skype) के जरिये यह ऑनलाइन कवि सम्मेलन सम्पन्न होगा। इस अवसर पर अशोक चक्रधर विश्व हिंदी सम्मेलन पर एक आलेख भी प्रस्तुत करेंगे जिसे वेब पर देखा जा सकेगा और इससे सम्बन्धित प्रश्न भी पूछे जा सकेंगे।
इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन का उद्देश्य विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग न ले सकने वाले लोगों को सम्मेलन की जानकारी उपलब्ध करवाना और सम्मेलन के लिए माहौल तैयार करना है। कवि सम्मेलन में हिस्सा लेने के इच्छुक लोग निम्न साइट पर और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं:http://www.hindiseekho.org/8vhs/8vhs16.htm
‘हिंदी सीखो’ वेबसाइट का संचालन होशंगाबाद ई-लायब्रेरी करती है।
कुछ समय पूर्व सृजनगाथा के संपादक जयप्रकाश मानस ने इसी प्रकार के एक कवि सम्मेलन का सफल मंचन किया था जिसकी काफी सराहना की गई थी।
वेबदुनिया अब यूनिकोड में
विश्व के पहले हिंदी पोर्टल के रूप में अपनी यात्रा प्रारंभ करने वाली वेबदुनिया, अब 9 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है और वो भी यूनिकोड में। हिंदी, तमिल, तेलुगु, और मलयालम के बाद अब कन्नड़, पंजाबी, गुजराती, मराठी और बांग्ला को भी वेबदुनिया ने अपने भाषा परिवार में जोड़ लिया है। वेबदुनिया विश्व का पहला ऐसा पोर्टल बन गया है, जो एक साथ 9 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है।
मानस को माता सुंदरी फाउंडेशन, उदीयमान प्रतिभा सम्मान
पिछले 10 वर्षों से युवा रचनाकारों को दिया जाने वाला साहित्य का माता सुंदरी फाउंडेशन, उदीयमान प्रतिभा सम्मान 2007 ललित निबंधकार, युवा आलोचक एवं सृजनगाथा के संपादक जयप्रकाश मानस को दिया गया है। गत 23 अप्रैल को राजधानी में आयोजित समारोह में विवेकानंद आश्रम ट्रस्ट के सचिव स्वामी आत्मानंद के करकमलों से प्रदान किया गया। मानस को पुरस्कार स्वरूप 5000 रुपये, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न, शाल एवं श्रीफल भेंट किया गया। इस समारोह में हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक व संडे आब्जर्वर के पूर्व संपादक रमेश नैयर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
INTERVIEWS AND PROFILES

आज की दिनचर्या और आज के परिवेश में योग का क्या महत्व है?
आप योग द्वारा बहुत सी बीमारियों का इलाज कर रहे हैं। क्या योग द्वारा कैंसर और एड्स जैसी बिमारियों का भी इलाज किया जा सकता है?पहली बात तो यह है कि कैंसर और एड्स तो बहुत बडी बिमारियाँ हैं। इन बिमारियों का भी योग द्वारा हम इलाज करते हैं, उसके साथ हम आयुर्वेद चिकित्सा का आशय लेते हैं।एड्स के बारे में मैं अभी टिप्पणी नहीं करता लेकिन इससे भी और अधिक समस्याएं हैं जो योग द्वारा पूरी तरह ठीक हो जाती हैं।
अन्य किन प्रकार की बिमारियों की चिकित्सा की जा सकती है, क्या स्ट्रैस वगैरह का भी इलाज योग द्वारा संभव है?
स्ट्रैस तो एक सामान्य चीज है। तनाव के लिए तो योग एक सबसे मूल मँत्र है। इसके अतिरिक्त हार्ट के ब्लोकिज, आर्थराइटि्स, अस्थमा, हार्पटेंशन व डायबिटिज इत्यादि हैं। व्यक्ति की तमाम समस्याओं का योग द्वारा समाधान होता है और असाध्य रोगों का भी।
कुछ समय पूर्व सुनने में आया था कि भारत के राष्ट्रपति ने आपसे कुछ रोगियों की चिकित्सा करने के बारे में आग्रह किया था?हाँ, वो हो रहा है और आगे भी होगा।
वे किस प्रकार के रोगी हैं जिनका आप राष्ट्रपति के आग्रह पर उपचार कर रहे हैं?
हमने मुख्य रूप से इन्हीं रोगों को चुना जैसे हार्ट के ब्लोकिज, डायबिटिज, मोटापा, आर्थराइटि्स और जो आम व्यक्ति की जिंदगी में बीमारियाँ हैं। करोङों लोग उनसे पीडित हैं, और वे बिना दवा के इससे स्वस्थ हो सकते हैं।
HINDI STORIES
सुदर्शन की कहानी
माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे ‘सुल्तान’ कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे। उन्होंने रूपया, माल, असबाब, ज़मीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि उन्हें नगर के जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मन्दिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। “मैं सुलतान के बिना नहीं रह सकूँगा”, उन्हें ऐसी भ्रान्ति सी हो गई थी। वे उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, “ऐसे चलता है जैसे मोर घटा को देखकर नाच रहा हो।” जब तक संध्या समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता।
खड़गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे। होते-होते सुल्तान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा, “खडगसिंह, क्या हाल है?”
खडगसिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया, “आपकी दया है।”
“कहो, इधर कैसे आ गए?”
“सुलतान की चाह खींच लाई।”
“विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।”
“मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।”
“उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी!”
“कहते हैं देखने में भी बहुत सुँदर है।”
“क्या कहना! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।”
“बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूँ।”
बाबा भारती और खड़गसिंह अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड़गसिंह ने देखा आश्चर्य से। उसने सैंकड़ो घोड़े देखे थे, परन्तु ऐसा बाँका घोड़ा उसकी आँखों से कभी न गुजरा था। सोचने लगा, भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड़गसिंह के पास होना चाहिए था। इस साधु को ऐसी चीज़ों से क्या लाभ? कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्चात् उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला, “परंतु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?”
दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर गए। घोड़ा वायु-वेग से उडने लगा। उसकी चाल को देखकर खड़गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसंद आ जाए उस पर वह अपना अधिकार समझता था। उसके पास बाहुबल था और आदमी भी। जाते-जाते उसने कहा, “बाबाजी, मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा।”
बाबा भारती डर गए। अब उन्हें रात को नींद न आती। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी। प्रति क्षण खड़गसिंह का भय लगा रहता, परंतु कई मास बीत गए और वह न आया। यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ असावधान हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की नाईं मिथ्या समझने लगे। संध्या का समय था। बाबा भारती सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उनकी आँखों में चमक थी, मुख पर प्रसन्नता। कभी घोड़े के शरीर को देखते, कभी उसके रंग को और मन में फूले न समाते थे। सहसा एक ओर से आवाज़ आई, “ओ बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।”
आवाज़ में करूणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, “क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?”
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा, “बाबा, मैं दुखियारा हूँ। मुझ पर दया करो। रामावाला यहाँ से तीन मील है, मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।”
“वहाँ तुम्हारा कौन है?”
“दुगार्दत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।”
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है। उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। वह अपाहिज डाकू खड़गसिंह था।बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे और कुछ समय पश्चात् कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले, “ज़रा ठहर जाओ।”
खड़गसिंह ने यह आवाज़ सुनकर घोड़ा रोक लिया और उसकी गरदन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूँगा।”
“परंतु एक बात सुनते जाओ।” खड़गसिंह ठहर गया।
बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा जैसे बकरा कसाई की ओर देखता है और कहा, “यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है। मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूँगा। परंतु खड़गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ। इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।”
“बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल घोड़ा न दूँगा।”
“अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।”
खड़गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड़गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और पूछा, “बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?”
सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, “लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।” यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।
बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड़गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूँज रहे थे। सोचता था, कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! उन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे देखकर उनका मुख फूल की नाईं खिल जाता था। कहते थे, “इसके बिना मैं रह न सकूँगा।” इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं। भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुख की रेखा तक दिखाई न पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग दीन-दुखियों पर विश्वास करना न छोड़ दे। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।
रात्रि के अंधकार में खड़गसिंह बाबा भारती के मंदिर पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था। आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंक रहे थे। मंदिर के अंदर कोई शब्द सुनाई न देता था। खड़गसिंह सुल्तान की बाग पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक खुला पड़ा था। किसी समय वहाँ बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे, परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था। खड़गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से फाटक बंद कर दिया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे। रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था। चौथा पहर आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया। उसके पश्चात्, इस प्रकार जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर बढ़े। परंतु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई। साथ ही घोर निराशा ने पाँव को मन-मन भर का भारी बना दिया। वे वहीं रूक गए। घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और ज़ोर से हिनहिनाया। अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़ते हुए अंदर घुसे और अपने प्यारे घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन से बिछड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो। बार-बार उसकी पीठपर हाथ फेरते, बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते। फिर वे संतोष से बोले, “अब कोई दीन-दुखियों से मुँह न मोड़ेगा।”
HINDI SHORT STORIES
मुँशी प्रेमचँद की कहानी
विन्घ्याचल पर्वत मध्यरात्रि के निविड़ अन्धकार में काल देव की भांति खड़ा था। उस पर उगे हुए छोटे-छोटे वृक्ष इस प्रकार दष्टिगोचर होते थे, मानो ये उसकी जटाएं है और अष्टभुजा देवी का मन्दिर जिसके कलश पर श्वेत पताकाएं वायु की मन्द-मन्द तरंगों में लहरा रही थीं, उस देव का मस्तक है मंदिर में एक झिलमिलाता हुआ दीपक था, जिसे देखकर किसी धुंधले तारे का मान हो जाता था।
अर्धरात्रि व्यतीत हो चुकी थी। चारों और भयावह सन्नाटा छाया हुआ था। गंगाजी की काली तरंगें पर्वत के नीचे सुखद प्रवाह से बह रही थीं। उनके बहाव से एक मनोरंजक राग की ध्वनि निकल रही थी। ठौर-ठौर नावों पर और किनारों के आस-पास मल्लाहों के चूल्हों की आंच दिखायी देती थी। ऐसे समय में एक श्वेत वस्त्रधारिणी स्त्री अष्टभुजा देवी के सम्मुख हाथ बांधे बैठी हुई थी। उसका प्रौढ़ मुखमण्डल पीला था और भावों से कुलीनता प्रकट होती थी। उसने देर तक सिर झुकाये रहने के पश्चात कहा।
‘माता! आज बीस वर्ष से कोई मंगलवार ऐसा नहीं गया जबकि मैंने तुम्हारे चरणो पर सिर न झुकाया हो। एक दिन भी ऐसा नहीं गया जबकि मैंने तुम्हारे चरणों का ध्यान न किया हो। तुम जगतारिणी महारानी हो। तुम्हारी इतनी सेवा करने पर भी मेरे मन की अभिलाषा पूरी न हुई। मैं तुम्हें छोड़कर कहां जाऊ?’
‘माता! मैंने सैकड़ों व्रत रखे, देवताओं की उपासनाएं की’, तीर्थयाञाएं की, परन्तु मनोरथ पूरा न हुआ। तब तुम्हारी शरण आयी। अब तुम्हें छोड़कर कहां जाऊं? तुमने सदा अपने भक्तो की इच्छाएं पूरी की है। क्या मैं तुम्हारे दरबार से निराश हो जाऊं?’
सुवामा इसी प्रकार देर तक विनती करती रही। अकस्मात उसके चित्त पर अचेत करने वाले अनुराग का आक्रमण हुआ। उसकी आंखें बन्द हो गयीं और कान में ध्वनि आयी।
‘सुवामा! मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूं। मांग, क्या मांगती है?
सुवामा रोमांचित हो गयी। उसका हृदय धड़कने लगा। आज बीस वर्ष के पश्चात महारानी ने उसे दर्शन दिये। वह कांपती हुई बोली ‘जो कुछ मांगूंगी, वह महारानी देंगी’ ?
‘हां, मिलेगा।’
‘मैंने बड़ी तपस्या की है अतएव बड़ा भारी वरदान मांगूगी।’
‘क्या लेगी कुबेर का धन’?
‘नहीं।’
‘इन्द का बल।’
‘नहीं।’
‘सरस्वती की विद्या?’
‘नहीं।’
‘फिर क्या लेगी?’
‘संसार का सबसे उत्तम पदार्थ।’
‘वह क्या है?’
‘सपूत बेटा।’
‘जो कुल का नाम रोशन करे?’
‘नहीं।’
‘जो माता-पिता की सेवा करे?’
‘नहीं।’
‘जो विद्वान और बलवान हो?’
‘नहीं।’
‘फिर सपूत बेटा किसे कहते हैं?’
‘जो अपने देश का उपकार करे।’
‘तेरी बुद्वि को धन्य है। जा, तेरी इच्छा पूरी होगी।’
HINDI POETRY
1) मंज़िलों की खोज में तुमको जो चलता सा लगा मुझको तो वो ज़िन्दगी भर घर बदलता सा लगाधूप आयी तो हवा का दम निकलता सा लगा और सूरज भी हवा को देख जलता सा लगाझूठ जबसे चाँदनी बन भीड़ को भरमा गया सच का सूरज झूठ के पाँवों पे चलता सा लगामेरे ख्वाबों पर ज़मीनी सच की बिजली जब गिरी आसमानी बर्क क़ा भी दिल दहलता सा लगाचन्द क़तरे ठन्डे क़ागज़ के बदन को तब दिए खून जब अपनी रगों में कुछ उबलता सा लगा2)वो मेरा ही काम करेंगे जब मुझको बदनाम करेंगेअपने ऐब छुपाने को वो मेरे क़िस्से आम करेंगेक्यों अपने सर तोहमत लूं मैं वो होगा जो राम करेंगेदीवारों पर खून छिड़क कर हाक़िम अपना नाम करेंगेहैं जिनके किरदार अधूरे दूने अपने दाम करेंगेअपनी नींदें पूरी करके मेरी नींद हराम करेंगेजिस दिन मेरी प्यास मरेगी मेरे हवाले जाम करेंगेकल कर लेंगे कल कर लेंगे यूँ हम उम्र तमाम करेंगेसोच-सोच कर उम्र बिता दी कोई अच्छा काम करेंगेकोई अच्छा काम करेंगे खुदको फिर बदनाम करे.